प्रस्तावना
लोग मुझे पुस्तक के नाम से जानते हैं। जिस रूप में मैं लोगों को दिखती हूं वैसा रूप मेरा पुराने काल में नही था। ये वही गुरु शिष्य को मौखिक ज्ञान प्रदान करता था। उस समय तक कागज का ईजाद भी नहीं हुआ था। शिष्य सुनकर ज्ञान को प्राप्त करते थे।
मेरे कई रूप हैं, सभी धर्मों को ध्यान में रखते हुए मेरा परिचय होता है। हिन्दुओं के लिए मैं रामायण व गीता की भांति हूँ, तो मुसमलानों के लिए कुरान के जैसे। ईसाई में बाईबल के रूप में और सिक्ख गुरू ग्रंथ समझ कर मेरा सम्मान और मेरी पूजा करते हैं।
इस प्रकार मेरे कई रूप हैं और इसी वजह से मेरे नाम भी अनेक हैं। लोग मुझे कई रूप में पुस्तकालय में देख सकते हैं। मानव समाज में भिन्न प्रकार के जातियाँ हैं। इसी वजह से मेरी भी कई जातियाँ हैं।
मेरी परिभाषा
ज्ञान को पूर्ण रूप से महफूज़ रखने के लिए उसे लिपिबद्ध करना बहुत ज़रूरी हो गया। तब ऋषियों ने भोजपत्र पर लिखने की कोशिश की। यह कागज का पहला रूप था।
भोजपत्र आज के ज़माने में भी देखने को मिलते हैं। हमारी बहुत पुरानी साहित्य भोजपत्रों और ताड़तत्रों पर ही लेख लिखने का कार्य होता है।
मुझे कागज की भांति ढालने के लिए घास-फूस, बांस के टुकड़े, पुराने कपड़े के पीस कर लोग फिर पूरी तरह से गला देते हैं, उसकी लुगदी बनाकर मुझे मशीनों के नीचे ले जाया जाता है, तब मैं कागज के प्रतिरूप में लोगों के इस्तेमाल में आती हूँ।
जब मैं पूर्ण रूप से तैयार हो जाती हूँ तब मुझे लेखक के पास लिखने के लिए भेज दिया जाता है। वहाँ मैं प्रकाशक के पास और फिर प्रेस में जाती हूँ। प्रेस में पहुंच कर लोग मुझे छापेखाने की मशीनों में भेजा देते हैं और फिर छापेखाने से बाहर आकर में जिल्द बनाने वाले के पास चली जाती हूँ ।
मेरी खूबियां और मेरा सम्मान
बड़े-बड़े पुस्तकालयों में मुझे सम्भाल कर रखा जाता है, जिससे मेरा कद और गौरव और भी अधिक बढ़ जाता है। अगर लोग मेरे पन्नों को फाड़ने की कोशिश करे तो उसे दण्ड भी दिया जाता है और पुस्तकालय से निष्काषित भी कर दिया जाता है।
दुबारा वहां बैठकर फिर से अध्ययन करने की स्वीकृति नहीं दी जाती। ये बात तो सभी जानते है कि, किताब में विद्या की देवी सरस्वती माँ होती है। कई तरह के खोजों में रुचि रखने वालों की मैं सहेली के जैसे रहती हूँ।
इस तरह के लोग मुझे बार-बार पढ़कर अपने खुशी व आनंद का स्रोत समझते हैं। मैं भी उनमें विवेक जागृत करती हूँ। उनकी बुद्धि से अज्ञान रूपी अन्धकार को पूरी तरह से बाहर निकलती हूँ।
मेरी यातना
मुझे इस बात से बहुत पीड़ा होती है, जब लोग इस्तेमाल करके मुझे रद्दी बनाकर फेंक देते हैं और टोकरी में डाल देते हैं। ऐसी हालत में मुझे चिंता होती रहती है कि अब मेरा भविष्य, मेरा कल कैसा होगा ? कभी-कभी लगता है कि, अब मेरी पहचान इन मूंगफली वाला, चाटवाला, सब्जीवाला के हाथों रह जाएगा।
अब मेरा बस यही काम रह गया है कि, लिफाफे बनाने वाले को देकर लिफाफे बनवाएगा या कोई गरीब पुस्तक से प्रेम करने वाला कम भाव पे मुझे अपने घर ले आएगा।
निष्कर्ष
मेरी ये यातना है कि, लोग मुझे फाड़े नहीं, मुझे घर में सही प्रकार से रखें और उपयोग करें। में यह बात कहना चाहती हूं कि, जो व्यक्ति मेरा आदर व सम्मान करता है मैं उसका आदर करती हूँ। भविष्य में महान् व्यक्तियों की गिनती होती है ऐसे लोगों की। जहां वह अपनी विद्वता का बखान करके दूसरों से आदर पाता है। कितने व्यक्ति परिश्रम करके मुझे आप लोगों के पास ले जाते हैं।
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