प्रस्तावना
परोपकार करना अपने घर से शुरू होता है। यह कहावत बिल्कुल सच्ची है। क्योंकि कोई व्यक्ति अपने परिवार से प्यार नहीं कर सकता तो, वह व्यक्ति किसी और से कैसे प्यार कर सकता है। क्योंकि परोपकार करना मतलब अपने भलाई से ज्यादा हमेशा दूसरों के भलाई के बारे में सोचना।
ऐसा करने के लिए उस व्यक्ति के दिल में दूसरों के प्रति दयालु स्वभाव और प्यार होना जरूरी है। इसलिए यह कहावत हम सभी के लिए एक सबक है। अगर हमे एक परोपकारी व्यक्ति बनना है तो सबसे पहले, हमें अपने परिवार की अच्छे से देखभाल करनी चाहिए। उनको आपके प्यार की बहुत जरूरत होती है।
इसलिए हमे उनपर पूरे दिल से प्यार करने की ज़रूरत है। उसके बाद हम बाहरी दुनिया में प्यार की बौछार कर सकते हैं। क्योंकि एक व्यक्ति की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वह अपने परिवार की सेवा करे। दूसरों की तुलना में अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों को पूरा करें।
बेहतर समाज का भविष्य
हमारे जीवन में हमारा परिवार सबसे पहले आता है। इसलिए वो हमारे प्यार का सबसे बड़ा हिस्सा होता है। इसलिए हमें दूसरों की मदद करने से पहले उनकी मदद करनी चाहिए। हमे अपने बच्चों को घर पर दान के बारे में सिखाया जाना चाहिए।
क्योंकि एक बच्चा कोई भी चीज अपने बड़ों को देखकर सीखता है, अगर माता-पिता प्यार कर रहे हैं और सामाजिक कारण को महत्व देते हैं तो उनके बच्चे भी वही सीखेंगे और समाज को बेहतर बनाने के लिए कुछ प्रयास करेंगे।
मतलब एक बच्चा अगर अपने माता-पिता को गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करते हुए देखता हैं तो वो यह अच्छी आदत अपने माता-पिता से सीखता है और वो बच्चा बड़ा होकर अपने माता-पिता की तरह गरीब लोगों की मदत करके उनपर परोपकार करता है।
लेकिन अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता को गरीब लोगों के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखता है, तो वो बड़ा होकर उन्ही की तरह बन जाता है। जिसे परोपकार के बारेमें कुछ भी ज्ञान नहीं होता है। इसलिए, हमारे बच्चों को परोपकार जैसी अच्छी चीजें सिखाना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक बेहतर समाज का भविष्य है।
बच्चे और परिवार को प्राथमिकता देना
यदि माता-पिता अपने बच्चों को पूरी तरह से अनदेखा करते हैं और दूसरों की मदद करने में खुद को पूरी तरह से समर्पित कर देते हैं तो क्या उनके बच्चे भी दूसरों की मदद करना पसंद करेंगे? इसका जवाब नहीं होगा क्योंकि उन्हें लगेगा कि ये लोग उन्हें उनके माता-पिता से दूर रख रहे हैं। इसलिए वो बच्चे अपने माता-पिता से नफरत करेंगे।
क्योंकि बच्चे भी तभी आगे बढ़ेंगे जब हम बच्चों और परिवार के सदस्यों की आवश्यकता के प्रति संवेदनशील रहेंगे। उसके बाद, हम बाहर जा सकते हैं और दूसरों की मदद कर सकते हैं। जो एक सभ्य जीवन जीने का सबसे अच्छा तरीका है।
इसलिए हमें अपने परिवार को प्राथमिकता देना सीखना चाहिए क्योंकि, बच्चे और परिवार को अनदेखा करके सिर्फ समाज के हित में काम करना हमारे लिए और हमारे परिवार दोनों के लिए बुरा है।
निष्कर्ष
परोपकार घर से आरंभ होता है, यह कहावत हमे बहुत बड़ा संदेश देती है। हमे अपना जीवन बेहतर और संतोषजनक जीने के लिए हत्वपूर्ण समझना चाहिए। इसलिए हमे परोपकार करने से पहले अपने परिवार को प्राथमिकता देनी होगी। जिसमे हमे अपने बच्चों और परिवार को भरपूर प्यार करना होगा। उनकी हर जरूरतों को पूरा करना होगा। उसके बाद हम गरीब और जरूरतमंद लोगों को मदत करके उनपर परोपकार कर सकते है।
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